विद्यालय में एक मंदबुद्धि छात्र था. विद्यालय में जैसे ही वह प्रवेश करता, चारों ओर उसपर व्यंग वाणों की बौछार होने लगती. इससे उसने विद्यालय आना ही छोड़ दिया. एक दिन वह भ्रमण कर रहा था. घुमते हुए उसे प्यास लगी. वह कुएं के पास गया और पानी पीने के बाद वहीँ बैठ गया. उसकी दृष्टि पत्थर पर पड़ी उस निशान पर गयी, जिस पर बार बार कुएं से पानी खीचने के कारण रस्सी के निशान बन गए थे. वह विचार करने लगा कि जब बार बार पानी खीचने से इतने कठोर पत्थर पर रस्सी के निशान पड़ सकते हैं तो निरंतर अभ्यास से मुझे क्या विद्या नहीं आ सकती? उसने यह विचार गांठ में बांध लिया और पुनः विद्यालय जाना आरम्भ कर दिया. उसकी लगन देखकर अध्यापकों ने भी उसे सहयोग किया. कुछ सालों बाद यही विद्यार्थी वरदराज के रूप में विख्यात हुआ... ravindra.viert@gmail.com
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