Tuesday 4 June 2013

ऊँचा उठना रंगत पर नहीं, बल्कि हमारे भीतर क्या है, इस पर निर्भर करता है...


उद्घाटन समारोह में बहुत से रंग-बिरंगे खुबसूरत गुब्बारों के बीच एक काला बदसूरत  गुब्बारा भी था, जिसकी सभी हंसी उड़ा रहे थे. गोरे चिट्टे गुब्बारे ने मुंह बनाते हुए कहा, 'देखो, कितना बदसूरत है, देखते ही उलटी आती है.' सेब जैसा लाल गुब्बारा बोला, 'तू तो दो कदम में ही टें बोल जायेगा, फूट यहाँ से!' हरे-भरे गुब्बारे ने हंसते हुए कहा, 'भाइयों, जरा इसकी शक्ल तो देखो, पैदाइशी भुक्खड़  लगता है., 
सब हसनें लगे, पर बदसूरत गुब्बारा कुछ नहीं बोला. उसे पता था ऊँचा उठना उसकी रंगत पर नहीं, बल्कि उसके भीतर क्या है, इस पर निर्भर करता है. जब गुब्बारे छोड़े गए तो काला, बदसूरत गुब्बारा सबसे आगे था..
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